चूँकि भूगोल पृथ्वी के धरातल सम्बन्धी चीजों का अध्ययन करता है इसलिए यह अतिआवश्यक हो जाता है कि सैद्धांतिक पक्ष जो कक्षाओं में बताया जाता है उसका व्यावहारिक पक्ष अथवा वश्ताविक स्थलाकृतियों की जाँच उसी वातावरण में जाकर करे जिससे सही तरीके से भूगोल को समझा जा सके।
प्रादेशिक भूगोल का प्रत्यक्ष रूप से शैक्षणिक भ्रमण से है जो व्यक्ति जितना ज्यादा अपने जीवनकाल में भ्रमण किया हुआ रहेगा उतना उसका प्रादेशिक भूगोल मजबूत होगा।
शैक्षणिक भ्रमण की महत्वो को निम्नलिखित तरीको से समझा जा सकता है
१. पुनर्ताजगी (Reinforcement) एक विद्यार्थी जो भूगोल को स्कूल या कॉलेज की कक्षाओं तक उसका सैद्धांतिक पक्ष समझता है भ्रमण कर उस स्थलाकृतिक चीजों को अच्छी तरह समझ सकता है।
२. व्यस्तता (Engagement) शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए एक चलित कक्ष (Mobile classroom) में बदल सकता है जहाँ विद्यार्थीओ को उस क्षेत्र में जाकर वहां के आंकड़े का संग्रहण एवं विश्लेषण द्वारा उन्हें व्यस्त किया जा सकता है जिससे कुछ नए तथ्य एवं विधि विद्यार्थी सीख पाते है।
४. दिखावाकरण (Exposure) जो शैक्षणिक भ्रमण नहीं जाते है उनकी तुलना में जो बच्चे भ्रमण करने जाते है कुछ नयी एवं प्रायोगिक बाते सीख पाते है। जिससे बच्चो का व्यावहारिक ज्ञान उन्नत होता है।
५. जिज्ञासुपन (Curiosity) चूँकि बच्चे जिज्ञासुपन वाले होते है और शैक्षणिक भ्रमण में जाकर उनकी जिज्ञासा शांत होती है फलस्वरूप बच्चो के ज्ञान की सीमा में बढ़ोतरी होती है।
६. अवधारण (Retention) बच्चो के मानसपटल पर शैक्षणिक भ्रमण का जो प्रभाव पड़ता है उसका सकारात्मक पहलु यह भी है कि बच्चो में धारावाहिक यादास्त (Episodic memories) में वृद्धि होती है जो बच्चो को आगे के ज्ञान हासिल करने में मदद करता है।
७. नए जगह का भ्रमण (Excursion to new sites) शैक्षणिक भ्रमण द्वारा बच्चे नए - नए जगहों को देखकर समझ पाते है जो कक्षा में बैठकर पढ़ने से अच्छा है।
८. जिम्मेवार (Boarding) बच्चे जब समूह में भ्रमण करने जाते है तब अपने सहपाठियों एवं शिक्षकगण से व्यक्तिगत तौर पर जुड़ पाते है एवं यह अनुभव विद्यार्थीओ को जिम्मेवार बनाता है।
९. गैर-परंपरागत शैक्षणिक वातावरण (Informal Learning Environment) चूँकि शैक्षणिक भ्रमण के द्वारन गैर-परंपरागत तरीको द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है जिससे किसी प्रकार कि कोई पुस्तक सामग्री नहीं होती बच्चे मौखिक रूप से ही आसानी से ज्ञान प्राप्त कर लेते है।
१०. ख़ुशी (Fun) शैक्षणिक भ्रमण के द्वारन बच्चे अपने स्तर से खुशनुमा वातावरण का निर्माण करते है जिसमे बच्चो को मौज-मस्ती करने का खुला वातावरण भी मिलता है और वे खेल-खेल में बहुत कुछ सीख जाते है।११. दृश्टिकोण का विकास (Development of Perspective) चूँकि बच्चे उसी वातावरण में ना रहकर दूसरे वातावरण में जाते है जहाँ की भाषा, स्थलाकृति, लिपि, वेश-भूषा अलग हो सकती है i दूसरे सांस्कृतिक दृश्यों को दूसरे वातावरण में जाकर सीखने से एक प्रकार की बच्चो में दृश्टिकोण का विकास होता है जो बच्चो में बाद में जाकर बहुआयामी विकास में मदद करता है।
१२. सीखने की पद्दति का विकास (Development of Learning Style) शैक्षणिक भ्रमण द्वारा बच्चो में अलग - अलग सीखने की पद्दति का विकास होता है जो विषयो को समझने में मदद करता है।
१३. व्यस्त कक्षाओं के बीच थोड़ी उलहङपन (Break from the Routine) स्कूल या कॉलेज की कक्षाएं काफी व्यस्त होती है जिसमे से जब विद्यार्थी समय निकालकर किसी दूसरे प्रदेश में जाते है तो उन्हें थोड़ा उलहङपन करने का मौका मिल जाता है जो उनके मानसिक स्थिरता प्रदान करता है।
१४. कुछ नया सीखना (Learn Something New) शैक्षणिक भ्रमण द्वारा बच्चे दूसरे प्रदेश में जाकर कुछ नया सीखते है जो शायद कक्षा में कभी पढ़े ही ना हो।
१५. एक व्यावसायिक तरीके का व्यव्हार करना (Teaches Professionalism) शिक्षक एक विद्यार्थी से यह आशा रखता है कि जब वे सब एक भ्रमण हेतु कक्षा के बाहर जाये तो उनमे एक व्यावसायिक तरीके की तरह व्यव्हार को जो बच्चो को व्यावहारिक बनने में मदद करेगा।
१६. वास्तविक दुनिया का अनुभव (Red world Experience) शैक्षणिक भ्रमण द्वारा बच्चे दूसरे वातावरण में जाकर वास्तविक दुनिया का अनुभव कर पाते है एवं जीवन जीने की कला को सीखते है।
१७. समुदाय से संपर्क (Connectivity to community) भ्रमण द्वारा बच्चे नए समुदायों द्वारा संपर्क करते है जिसमे उनके परम्पराओ के बारे में सीख पाते है।
१९. स्वयं निर्भरता (Self dependency) बच्चे घर में या कक्षा में माता - पिता अथवा शिक्षक - शिक्षिका पर निर्भर होते है जिसमे कई तरह के रुकावटे होते है किन्तु भ्रमण के द्वारा बहुत सारी काम बच्चो को स्वयं करना होता है जैसे अपना बैकबैग उठाना, जिससे आत्मा निर्भरता बच्चो की बढ़ती है।
निष्कर्ष : अतः हम कह सकते है कि शैक्षिणिक भ्रमण एक विधि है जिसके माध्यम से बच्चो के अंदर छिपी हुई शक्तियों का भरपूर उपयोग उनके व्यावहारिक ज्ञान को सवारने में किया जा सकता है जिससे बच्चो के भीतर बहुआयामी विकास हो पाने में मदद मिलती है।
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