भूगोल विषय का इतिहास किसी अन्य विषय की तुलना में अति प्राचीन रहा है। स्थान एवं ज्ञान का अनुप्रयोग हमारे प्राचीन पूर्वज भी किया करते थे, परन्तु व्यावहारिक ज्ञान आज की तुलना में अत्यंत नगण्य था। स्थान सम्बन्धी जिज्ञासा एवं ज्ञान प्राचीन मानव को एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थान्तरित करने में सहायता पहुंचाई। यह बाद में पृथ्वी धरातल पर मानव स्थान्तरण का कारण बना। अतः भूगोल में स्थान सम्बन्धी व्यावहारिक ज्ञान का खास महत्व है।
प्राचीन भारत के विद्वान जैसे चाणक्य, आर्यभट्ट, पाणिनि एवं अन्यो ने भौगोलिक ज्ञान का प्रयोग अपने व्यावहारिक ज्ञान की उन्नत्ति में लगाया तथापि चाणक्य जैसे विद्वान ने राजनैतिक भूगोल की कई विधाओ का सफलतापूर्वक प्रयोग उस समय के भौगोलिक साम्राज्य के अंतरगर्त किया।
चौदहवी शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी के बीच पुरे विश्व के विद्वानों ने अपने भौगोलिक ज्ञान की परिसीमा का विस्तार विज्ञान के बल पर किया, जिसके फलस्वरूप विश्व का वास्तविक मानचित्र धीरे - धीरे स्पष्ट होने लगा, किन्तु ठीक इसी समय मनुष्य की स्वार्थपूर्ण कामनाये भी विकसित हुई। वे जहाँ भी गए अपनी उपनिवेशो की स्थापना करते गए। औद्योगिक क्रांति के पश्चात् तो जैसे मनुष्य का यह व्यावहारिक ज्ञान मशीनीकरण पर आ पंहुचा, जिससे एक वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था का जन्म हुआ, जो उपनिवेशिक स्वार्थ की पूर्ति का साधन बना।
विद्वानों के अनुसार आधुनिक भूगोल की रुपरेखा प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सबसे अधिक विकसित हुई, इनका प्रयोग भी बढ़ा, जिससे भूगोल के अनेक विधाओ का जन्म हुआ।
आज भी विश्व के कुछ गिने - चुने देश ही विकास की दौड़ में प्रथम कतार में खड़े है और ये वही देश है, जिसने इस विषय के विद्या का प्रयोग सबसे अधिक किया। वर्तमान युग में इसकी व्यवहारिकता का अंदाजा इसके अत्यधिक वैज्ञानिक प्रयोगो द्वारा लगाया जा सकता है। उदाहरणार्थ – GPS, GIS, सुदूर संवेदन, रोबोटिक एवं इंजीनियरिंग ज्ञान की सीमाओं को
भी पार कर दिया है। अतः यह कहना गलत न होगा कि निकल भविष्य में युद्ध मनुष्य नहीं बल्कि
रोबोट एवं ड्रोन द्वारा लड़ी जाएगी।
विद्यालय स्तर में भूगोल कि ज्ञान परिधि
विद्यालय स्तर में भूगोल कि ज्ञान परिधि भूगोल परिचय तक ही सीमित रखी जाती है, जिससे विद्यार्थीओ के बीच यह एक व्यावहारिक विद्या के रूप में विषय रोचक नहीं बन पाता है। शिक्षक महोदय द्वारा इस विषय का परिचय करवाते समय (उदाहरणस्वरूप) विद्यालय प्रांगण में स्थित किसी भी चीज का प्रयोग कर सकते है जैसे - धरातल को समझाते समय विद्यालय में स्थित मैदान या वनस्पतियो का उल्लेख कर सकते है। उच्च माध्यमिक स्तर पर शिक्षक वहां स्थित मानचित्रो द्वारा विद्यालय कि स्थिति इत्यादि को बता सकते है। कभी - कभी पाठ्य विषय में भू - आकृतियों का नाम आता है जैसे - हिमानीकृत भूआकृति जिसे विद्यार्थी शायद वास्तविक रूप में कभी नहीं देखे होंगे। इस स्थिति में शिक्षक महोदय किसी बॉलीवुड चलचित्र कि व्याख्या करके समझा सकते है। जैसे - शीत मरुस्थल के उदाहरण स्वरुप लदाख क्षेत्र की स्थलाकृति को समझानी है तो '३ इडियट' चलचित्र की व्याख्या का प्रयोग किया जा सकता है अर्थात विषय को रोचक बनाने से विद्यार्थियों को भूगोल पढ़ने की इच्छा और अधिक प्रबल हो सकती है।
स्थानीय स्तर पर भूगोल का प्रयोग
चूँकि भूगोल विषय का सम्बन्ध पूरी पृथ्वी के धरातल का अध्यन से है, अतः शिक्षक महोदय के पास उदाहण लेने के लिए चीजों की कमी नहीं है। स्तानीय स्तर पर भूगोल को समझाने के लिए किसी विद्यालय का परिसर का प्रयोग किया जा सकता है। यहाँ प्रयोग के रूप में एन० डी० राष्ट्रीय विद्यालय (एच०एस०) की अवस्थिति का परिचय करेंगे जो निम्नांकित मानचित्र द्वारा दिखाया गया है, बाद में गूगल अर्थ के चित्रों द्वारा भी समझेंगे।
उपर्युक्त गूगल अर्थ के चित्रों द्वारा विद्यालय की वास्तविक स्थिति एवं अन्य गणितीय गणना बताया गया है, जैसे विद्यालय की अक्षांश - देशांतरीय स्थिति, प्रधानाध्यापक महोदय के दफ्तर की भौगोलिक स्थिति, विद्यालय की चौहदी एवं परिसीमन तथा विद्यालय की परिसीमन दिवार की लम्बाई (63 मीटर) इत्यादि की गणना सफलतापूर्वक की जा सकती है।
एन० डी० राष्ट्रीय विद्यालय (एच०एस०) के परिसर में स्थित भौगोलिक चीजे एवं उनकी स्थिति
क्र०स० भौगोलिक चीजे भौगोलिक स्थिति (अक्षांश एवं देशांतर)
01 विद्यालय की स्थिति 23072’35”N & 86090’26”E
02 मैदान के ठीक मध्य 23072’32”N & 86090’31”E
03 प्राइमरी विभाग 23072’37”N & 86090’28”E
04 रसोई घर 23072’34”N & 86090’35E
05 विद्यालय की सबसे ऊँची छत 23072’37”N & 86090’31”E
स्त्रोत: गूगल अर्थ की सहायता से प्राप्त आंकड़े
कक्षा में विद्यार्थियों का व्यावहारिक भौगोलिक प्रतिनिधित्व
भोगोल विषय को और अधिक रोचक और प्रायोगिक बनाने के लिए प्रत्येक कक्षा में उसके सिलेबस के आधार पर विद्यार्थीओ का व्यावहारिक प्रायोगिक प्रतिनिधित्व प्राप्त किया जा सकता है जैसे कक्षा 9 में चट्टान - विषय को पढ़ना है, तो शिक्षक अगले दिन विधार्थियो को इलाके में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के चट्टानों की पहचान करा सकते है। उसी प्रकार धरातल पर स्थित नदियों, झीलों, पर्वतो, पठारों अथवा हिमनदों का मॉडल तैयार करवाया जा सकता है या हो सके तो शिक्षक महोदय उन भू - आकृतियो से परिचय करवाने के लिए शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन कर सकते है।
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