उच्च हिमालय पर्वतीय
क्षेत्रो में अत्यधिक पर्यटको के कारण वायु प्रदुषण समस्या
भारतीय उपमाहद्वीप इन दिनों गर्मी से तप रहा है, यहाँ की चिलचलाती गर्मी
से बचने के लिए कुछ लोग हिमालय की समशीतोष्ण मौसम का मज़ा लेने निकल पड़े है। ये वादिया एवं घाटियां
जम्मू एवं कश्मीर, कुल्लू - मनाली, वद्रीनाथ-केदारनाथ, नेपाल हिमालय, सिक्किम हिमालय, भूटान हिमालय या
अरुणाचल प्रदेश का हिमालयी क्षेत्र हो सकता है। हाल-फिलहाल हमलोगो ने
उत्तरी सिक्किम (वृहद् हिमालय) का भ्रमण किया जिसकी औसत उचाई 4000 मीटर से 5500
मीटर तक है। गुरु तोंगमर झील उत्तरी
सिक्किम के सबसे उत्तरी भाग में स्थित है जिसकी उचाई लगभग 5400 मीटर तक है। इन क्षेत्रो में इतनी अधिक औसत उचाई के कारण
ऑक्सीजन समस्या सामान्य है। धरातलीय उचाई एवं
निम्न वायुमंडलीय दवाब के कारण एक स्वस्थ्य आदमी भी 50 प्रतिशत कम ऑक्सीजन ले पाता
है। लगभग सभी प्रयटक को इस
समस्या से जूझना पड़ता है, दूसरी तरफ पर्यटको को इस स्थान का भ्रमण करने के लिए दोपहर
के पहले का समय थल सेना के कैंप द्वारा निर्धारित किया जाता है क्योकि दोपहर के
बाद उच्च पर्वतीय क्षेत्रो में तेजी से
पृष्ठदृश्य में गुरुतोंगमर झील एवं पर्यटक
मौसम परिवर्तन होता है।
पर्यटको को ढ़ोने वाली चार
पहिया गाड़िया एक साथ कई सौ संख्या में पहुंच जाते है, वे गाड़िया भी ऑक्सीजन की
कमी के कारण अधिक मात्रा में काला धुआं का उत्सर्जन करते है। एक तो यह क्षेत्र पूरी
तरह से वनस्पति विहीन क्षेत्र है जहां ऑक्सीजन की मात्रा तो सामान्य उचाई के जैसा 21% है किन्तु ऑक्सीजन के कण फैले रहने के कारण उसे स्वशन लेने में 50% कम अनुभव
होता है और रही - सही कसर उपलब्ध वायु में गाड़ियों द्वारा उत्सर्जित धुआँ प्रदूषित कर देती है। पर्यटको को स्वांस लेने में बहुत असुविधा होती
है। हमलोग जबतक वनस्पति युक्त उचाई (लगभग 4000 मीटर
से 3500 मीटर के बीच) तक वापस नहीं पहुंचे तब
तक वायु प्रदूषित महसूस लग रही थी। गाड़ियों के शीशे बंद करने का भी उसपर कोई विशेष प्रभाव नहीं
पड़ रहा था। यही हाल एक दूसरा भ्रमण
का स्थल जीरो पॉइंट (उत्तरी सिक्किम का ऊपरी यामथांग घांटी) का भी था। वहाँ भी सैकड़ो गाड़िया सड़क
के दोनों और
एक आर्मी चेकपॉइंट पास स्थित वाहनों की कतार एवं वनस्पतिविहीन पर्वतीय ढाल (उत्तरी सिक्किम)
4200 मीटर की उचाई पर खड़े थे और वायु में डीजल का धुआं का गंध स्पस्ट
समझ में आ रहा था। इन दिनों सभी उच्च
पर्वतीय क्षेत्र अपने क्षमता से अधिक पर्यटक को प्राप्त कर रहा है। इस वायु प्रदूषण का
प्रभाव स्थानीय स्तर पर वहां के पर्यावरण पर जरूर पड़ेगा। विशेषतः वहां स्थित हिमनद
पर जो पहले स्थायी हिमनद हुआ करते थे किन्तु वैश्विक तपन
कम ऑक्सीजन के कारण इस उचाई पर लोग चलफिर नहीं पाते है
के कारण वर्ष के कुछ
महीने अब पिघल जाया करते है।
वहां स्थित हिमनदीय जलासय के ऊपर भी प्रभाव पड़ेगा जो प्रदूषकों के साथ मिलकर एसिड नुमा जल बनाएगी। वायु में घुलित प्रदूषक
कई अन्य तरह के पर्यावरणीय परिवर्तनों का कारण भी भविष्य में बनेगी। पर्यटको द्वारा कुछ क्षण
का यह मौज़ - मस्ती उच्च पर्वतीय क्षेत्रो में तत्कालीन वायु प्रदुषण का कारण बन
रहा है समय रहते उन क्षेत्रो में जाने वाली गाड़ियों की संख्या पर नियंत्रण किया
जाय वार्ना हमें गंभीर पर्यावरणीय समस्याओ का सामना करना पड़ेगा।
डॉ राजेश कुमार महतो,
mahtolu@gmail.com
सहायक शिक्षक,
एन० डी० राष्ट्रीय विद्यालय (एच० एस०), आसनसोल
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