भारत में जलवायु परिवर्तन कृत भविष्य की चुनौतियां
भारत की आर्थिक प्रगति का आधार यहाँ पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधन एवं उसका उत्पादन और उपभोग करने वाले भारतीय है। इसकी आर्थिक ब्यवस्था को मानसून प्रभावित करतीहै। जिस वर्ष मानसून अच्छी होती है उस वर्ष देश की आर्थिक अवस्था मज़बूत रहती है इसके विपरीत जिस वर्ष मानसून ख़राब रहती है उस वर्ष आर्थिक व्यवस्था चरमरा जातीहै। हम जानते है कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक घटना है जिस पर किसी देश का नियंत्रण नहीं है किन्तु इसके मानवीय कारणों में कुछेक देशो का योगदान अधिक है। विकास एवं उपभोग के कारण 'कार्बनउत्सर्जन' मजबूरी बनते जा रही है। हम एक छोटी सुई से लेकर बड़ी मशीनों के निर्माण में कार्बन उत्सर्जन करते है जो हमारी वायुमंडल में पहुच कर कृत्रिम तरीके से तापमान बढ़ा देता है। बढ़ा हुआ तापमान धरातल पर रहने वाले प्राणियों के प्राकृतिक आवाश को प्रभावित करता है। भारत की बर्तमान विकास-रफ़्तार कई विकसित देशो को खटकने लगी है जिसके कारण अंतराष्ट्रीयस्तर पर उनके द्वारा कई प्रकार के दवाब बनाने के प्रयास किये जा रहे है किन्तु भारत उनका पिछलग्गू ना बनकर विकासशील देशो का अग्रज बन कर एवं अपने हितो की रक्षा करते हुए संधियों में शामिल हो रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारणों एवं प्रभाव को कई अंतरास्ट्रीय संस्थाओ ने अपने रिपोर्ट द्वारा बताया है जिसमे I.P.C.C. का नाम सर्वोपरि है। यह संथा वैश्विक स्तर पर होने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मूल्यांकित करता है। इसके अनुसार पिछले एक शताब्दी में पृथवी के औसत तापमान में लगभग 10C वृद्धि हुई है जो सभी देशो की जलवायु को कम या अधिक प्रभावित कर रहा है। इसका प्रभाव भारत में कई प्रकार से पड़ने की संभावना है जैसे धरातलीय या पातालीय जल की मात्रा में कमी, असामयिक बाढ़, बादल का फटना, पर्वतीय हिमनद का पिघलना, हिमनदीय झील निष्कर्षण, समतल भू-भाग में होने वाली रवि एवं खरीफ फसलो के उत्पादन में कमी, मानसून की सक्रियता में कमी, वनस्पतियो एवं जंगलो पर प्रभाव, यहाँ रहने वाले मानव एवं अन्य प्राणियों पर प्रभाव, प्राणियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव, मिट्टी की गुणवक्ता में ह्राष, तटीय क्षेत्रो पर प्रभाव, मत्स्यन उधोग पर प्रभाव एवं कृषि व्यवस्था पर प्रभाव इसके साथ ही साथ बहुत सारे अप्रत्यक्ष प्रभाव भी है जो देश की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकते है।
जलवायु परिवर्तन के सबसे मजबूत साक्ष्यो में तापमान है जिसके वृद्धि से उस पर निर्भर विभिन्न चर प्रभावित होते है जैसे वायुमण्डीय तापमान वृद्धि से आद्रता प्रभावित होती है जिसका प्रभाव बादल बनने की प्रक्रिया पर पड़ता है जो अंततः मानसून की सक्रियता एवं तत्पश्चात कृषि ब्यवस्था पर पड़ता है।
हिमालय में जमी हुई हिमनद (जो सैकड़ो की.मी. में फैली है) के पिघलने से इसका प्रभाव हिमालय से निकलने वाली नदियों पर पड़ेगा। सतलज, सिंधु, यमुना, गंगा, कोशी, तीस्ता एवं ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों को ग्रीष्मकाल में मिलने वाली जल की मात्रा प्रभावित होगी जिससे इन नदी घाटियों में निवाश करने वाली करोड़ो जनसँख्या प्रभावित होगी। कहने का तात्पर्य है कि इन समतल मैदानी भू-भाग में कृषि की उत्पादकता प्रभावित होगी जो हमारे बढ़ते जनसँख्या के लिए खाद्य समस्या उत्पन्न कर सकती है। तीर्व गति से बढ़ते औसत तापमान के कारण उच्च पर्वत चोटियों में स्थित हिमनद पिघल रही है जो हिमालय वाहिनी नदियों में असमय बाढ़ का कारण बन सकती है इसके साथ ही साथ वहाँ हिमनदीय झील एवं हिमनदीय झील निष्कर्षण की समस्याएं तेजी से बढ़ेगी। बढ़ते तापमान का प्रभाव हिन्द महासागर के जलस्तर में बढ़ोतरी से भी है जो हमारे तटीय क्षेत्रो के बड़े भूभाग को जलमग्न कर देगा जिससे उपजाऊ तटीय क्षेत्र नहीं रहेंगे, वहीँ मत्स्यन उधोय्ग भी प्रभावित होंगे। आँडोमान एवं निकोबार द्वीप समूह के बहुत सारे छोटे द्विपो का अस्तिव खतरे में है। हिन्द महासागरीय मग्नतट पर रहने वाले छोटे वनस्पति एवं मूंगे का भविस्य संकट में है।
पेरू के पश्चिम में स्थित प्रशांत महासागर में बनने वाली एल-नीनो का प्रभाव अब हमारे मानसून की सक्रियता पर पड़ रहा है। मानसून हमारी अर्थव्यवथा की रीढ़ है। असामयिक मानसून कृषि की उत्पादकता को प्रभावित करती है उदाहरणस्वरूप धान की बीज़ बोआई के समय मानसून की वर्षा नहीं होने से उसे दुबारा लगाया नहीं जा सकता है। मानसून की वर्षा नदियों में अवशाद के जमाव एवं उससे बनने वाले बाढ़ के मैदान पर एवं गंगा के डेल्टा की वृद्धि पर भी vस j पड़ेगा। सुंदरवन में स्थित जैवविविधता का सतीत्व खतरे में है।
असामयिक चक्रवात, बाढ़, सूखा एवं बज्रपात जैसी प्राकृतिक आपदा की तीर्वता में बढ़ोतरी होने की संभावना है। बद्रीनाथ आपदा को हमलोग हाल-फिलहाल में झेले है ऐसे कई आपदा आने की संभावनाएं है।
प्राकृतिक आपदाओ के आलावे मानवीय आपदाओ में बढ़ोतरी होगी। लक्ष्यद्वीप, अन्डोमन-निकोबार द्वीप के आस पास छोटे द्वीप एवं तटीय क्षेत्रो में स्थायी रूप से वास करने वाले लोगो अर्थात जलवायु शर्णार्थीओ को मुख्य भूमि पर संगरक्षण देना पड़ेगा जिससे मुख्य भूमि पर जनसँख्या दवाब और बढ़ेगी। स्थानीय एवं बाहीरि लोगो के बीच मानवीय संघर्ष भी हो सकते है। तापमान में बढ़ोतरी का प्रभाव नए प्रकार के बीमारियों के रूप में भी सामने आ सकता है।
आने वाले पचास वर्षो के बारे में बात करे तो हमारी जनसँख्या दोगुनी हो जाएगी प्राकृतिक संसाधन की एक-एक इकाई कीमती होगी; जल, ज़मीन एवं जंगल जैसे संसाधन की मांग एवं पूर्ति के बीच काफी असंतुलन उत्पन्न होगा। आज हम प्रदूषित जल के कारण बंद बोतल में जल खरीद रहे है किन्तु भविस्य में दूषित वायु के कारण ऑक्सीजन गैस के सिलिंडर ढो रहे होंगे। शहरी विकास के कारण नगरपालिकाओं पर अत्यधिक दवाब होगा। खाद्य समस्या चरम पर होगी, लोगो के पास मुद्रा होंगे किन्तु खाद्य सामग्री सर्वत्र उपलब्ध नहीं होंगे। शहरी विकास के कारण उपजाऊ ज़मीन सीमेंट की पट्टियों में बदल दिए जायेंगे। उस समय हमारे वायुमंडल का तापमान 20C तक बढ़ चूका होगा।
जलवायु परिवर्तन से हमारा वायुमंडल रहने योग्य टिकाऊ होने की सम्भावना काफी कम है किन्तु हमें उस बदले हुए परिवेश में जिन्दा रहने के लिए अनुकूलित होना होगा। हमें ऐसे बीजो का विकास करना होगा जो उस बढ़े तापमान में ज़िंदा रह पाए। हमें उत्पादकता में और अधिक वृद्धि करनी होगी। हमें हरित तकनीको के ऊपर काम करना होगा। हमें प्रति व्यक्ति कार्बन-उत्सर्जन निर्धारित करनी होगी। हमें कार्बन टैक्स जैसे विकल्प पर विचार करना होगा जिसमे अर्जित मुद्रा का निवेश हरित तकनीक के विकास में लगाने होंगे। हमें बदले हुए पर्यावरण में जीने के लिए जनता को प्रशिक्षित करने होंगे। हमें दूसरे ग्रह पर नए उपनिवेश विकल्प के रूप में बनाने होंगे ताकि जरुरत पड़ने पर वहाँ जाकर रह सके। हमें ऐसे अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करना होगा जिसमे मानव प्रजाति के साथ अन्य प्राणियों को भी संग्रक्षित कर पाए। हमें ऐसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरुरत होगी जो हमारे आर्थिक रफ़्तार को बिना बाधा उत्पन्न किये उसे लागू कर पाएंगे।
डॉ. राजेश कुमार महतो,
पूर्व I.P.C.C. फेलो एवं PGT शिक्षक (एन. डी.राष्ट्रीय विद्यालय) सीतारामपुर, आसनसोल
9749620779
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